संपूर्ण संसार मे विभिन्न परम्परा एवं विधि स अनेको तरहक पावनि-तिहार मनाओल जाइत अछि, मुदा सूर्योपासना केर एहि महापाबनि सन आइ धरि कोनो पाबनि नहि भेल अछि. आदिकाल स चलैत आबि रहल एहि सूर्योपासना पाबनि के हम सब उल्लास एवं उमंगक संग निरंतर मनबैत आबि रहल छी. छठि से भावनात्मक लगाव एतेक जुड़ल छैक जे लोक जाहि ठाम रहथि, एहि पाबनि के अत्यन्त्य श्रद्धा एवं ख़ुशी केर संग मनबैत छथि. नहाय खायक संग शुरू होमयवला छठि पाबनिक चारि दिवसीय व्रत में 36 घंटा केर निर्जल व्रत राखब अपना आप में असाधारण अछि. नहाय खाय केर अगिला दिन होइत अछि खरना. एहि दिन सँ कठिन व्रत आरम्भ होइत अछि। व्रती दिनभरि अन्न-पानिक त्याग क साँझ सँ खीर बना, पूजाक उपरान्त प्रसाद ग्रहण करैत छथि, जकरा खरना कहल जाइत अछि। तेसर दिन डूबैत सूर्य के अर्घ्य अर्पण कायल जाइत अछि. चारिम आ अंतिम दिन उगैत सूर्य के अर्घ्य देलाक बाद व्रत केर समापन कायल जाइत छैक.
भगवान सूर्यक प्रति भक्त लोकनिक अटल आस्थाक एहि अद्भुत पाबनि में भावना केर एहन प्रचंड वेग होइत अछि जे लोक कोनो कोना में रहथि, पाबनि के ल एगो फराके उत्साह देखबा लेल भेटैत अछि. चारि दिन धरि मनाओल जाय वला सूर्योपासनाक एहि अनुपम महापाबनि के मुख्यरूप सन मिथिलांचल, बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश सहित सम्पूर्ण भारत में बहुत धूमधाम एवं हर्सोल्लासपूर्वक संग मनाओल जाइत अछि.
